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वेदव्यास द्वारा रचित भरत संहिता का नाम ही अगर आम भाषा में महाभारत हो गया तो सोचिये कैसा विराट रहा होगा ये युद्ध. जैसे भृगु और गर्ग संहिता है वैसे ही इस ग्रन्थ का नाम भी भरत संहिता है जिसे महा युद्द के चलते ही महाभारत कहा जाता है जिससे कम ही लोग ज्ञेय है.
18 दिनों तक चला ये युद्ध 14 वी रात्रि के बाद दिन रात चौबीसो घंटे लड़ा जाने लगा था और रात्रि या दिन में शिविर भी सुरक्षित नहीं रहते थे. इसलिए इस युद्ध में जित हार जो शुरुवात में किसी की नहीं दिख रही थी को तय करने के लिए रणनीति की ही आवश्यकता थी.
क्या आप जानते है की कौरवो के रणनीति कार शकुनि मामा थे वंही पांडवो की रणनीति स्वयं श्री कृष्ण तैयार कर रहे थे. लेकिन यंहा एक बात ये भी जान ले की अगर शकुनि की जगह विदुर रणनीति बनाते तो पांडव जित नहीं सकते थे भले ही उनकी रणनीति श्री कृष्ण बना रहे हो.
जाने इस युद्ध की वो रणनीतियां जो रही निर्णायक....
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युद्ध शुरू होने से पहले दोनों पक्षों के प्रमुख प्रतिनिधियों ने एक साथ बैठ कर युद्ध के नियम तय कर लिए थे की युद्ध में ये नियम नहीं टूटने चाहिए. एक से एक समय में एक ही लड़ेगा, निहत्थे पर या जमीन पर खड़े पर सवारी पर बैठा वार नहीं करेगा सूर्योदय से शुरू होगा और सूर्यास्त पर समाप्त हो जायेगा प्रतिदिन का युद्ध.
घायल हो चुके और भागते हुए पर कोई वार नहीं करेगा आदि आदि कुछ प्रमुख नियत तय हुए थे. भीष्म को शकुनि ने सेना पति बनाया तो दृष्ट्द्युमय को श्री कृष्ण ने पांडवो का दोनों में कोई मुकाबला नहीं था लेकिन श्री कृष्ण जानते थे की कौरवो को हारने के लिए कोई मर्यादित नहीं बल्कि हर रणनीति पर अमल करने वाला योद्धा चाहिए होगा.
मेरे सेनापति रहते कर्ण युद्ध नहीं लड़ेगा ये कहने पर दुर्योधन भीष्म को सेनापति पद से हटाना चाहता था लेकिन शकुनि ने उसे रोक दिया क्योंकि जब तक भीष्म सेनापति थे पांडव कौरवो से न जित सकते थे और न ही उनका कुछ बिगाड़ सकते थे.
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युद्ध शुरू होने से ठीक पहले कृष्ण के कहने पर युधिस्ठर ने विपक्षी सेना के सभी वरिष्ठ योद्धाओ से आशीर्वाद लिया जिसके बदले उन्हें सब की (भीष्म, द्रोणाचार्य, शल्य) की मौत का उपाय पता चला. उसी समय युधिस्ठर ने कौरव सेना के योद्धाओ को अपनी तरफ आने का प्रस्ताव दिया जिसमे धृतराष्ट्र पुत्र (दासी से) पांडवो में आ गया था.
बर्बरीक (भीम पौत्र) ने गलती से प्रण ले लिया था की जो हारेगा उसी की तरफ से लड़ेगा ऐसे में दोनों पक्ष को ही समाप्त करने पड़ते उसे. इसलिए श्री कृष्ण ने उससे उसकी ही बलि मांगकर सबको बचा लिया नहीं तो कुछ मिनटों में ही समाप्त हो जाता युद्ध.
दुर्योधन को गांधारी जब वज्र का कर रही थी तो श्री कृष्ण ने ही उसे केले के पते पहनवाकर अजेय होने से रोक लिया. अर्जुन की प्रतिज्ञा पूरी करने को सूर्य को अस्त होने का बहाना कर या फिर अश्वत्थामा हतो के अर्ध सत्य से द्रोणाचार्य का वध करना हो सभी कृष्ण की कृपा से ही सम्भव हुआ.
शकुनि ने तो ध्रितराष्ट्र से बदले के लिए ही दुर्योधन को बिगाड़ा था और युद्ध के नियम (अभिमन्यु वध) में तुड़वाकर उसने कौरवो की हार और मौत निश्चित कर दी थी. धृतराष्ट्र ने शकुनि के पिता और भाइयो को मरवाया था उसका बदला पूरा हुआ...