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लगभग हर भारतीय रामायण और रामकथा के बारे में जानता है और समझता भी है इसमें जो सुन्दर खंड है वो सबसे महत्त्व वाला है. इस दौरान हनुमान जी को अपनी भूली हुई शक्तिया याद आती है, सीता की खबर मिलती है उनके और राम जी के शोक का नाश होता है और विभीषण जैसे संत से हनुमान जी की मुलाक़ात होती है.
इसके अलावा लंका पर कुछ होता है और सेतु निर्माण की शुरुवात का मार्ग प्रशस्त होता है, इसी दौरान रावण के साथ हनुमान जी का संवाद होता है. इसी संवाद के दौरान जब हनुमान जी के जवाबो से क्रोधित रावण उन्हें मारने का आदेश देता है तो विभीषण उन्हें दूत बताकर निति अनुसार उस आदेश को बदलवा देते है.
तब रावण कहता है " कपि के ममता पूछ पर सबहि कहहु समझाई, तेल बोरी पट्ट बाँधी पुनि पावक देहु लगाई" यानी वानर को अपनी पूंछ बड़ी प्यारी होती है इसलिए ऐसा करो की इसके पूंछ पर कपड़ा लपेटकर तेल डाल दो और आग लगा दो, जब बिना पूंछ का वानर जायेगा तो अपने स्वामी को ले आएगा.
लेकिन क्या सच में हनुमान जी को पूंछ प्यारी थी क्या रही उनकी तब इसपे प्रतिक्रिया?
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रावण का आदेश सुन हनुमान जी मुस्कुराये और मन ही मन सोचा की माँ शारदा ही सहायक होकर रावण की जिह्वा पर बैठ गई है और उससे ये कहलवाया है. हनुमान जी का लंका विध्वंश का उद्देश्य था रावण की शक्ति का अनुमान लगाना जो की एक दूत का कर्तव्य था इसलिए ये जरुरी था.
हां लेकिन जब उनकी पूंछ में आग लगाई गई तो उन्हें अपनी पूंछ का प्रेम याद आया और वो अत्यंत क्रोधित हो गए इसलिए ही पूरी लंका फूंक दी. "ताकर दूत अनल जेहि सिरिजा जला न सो तेहि कारण गिरिजा" यानि अग्नि ने जिसको बनाया हनुमान जी उसी के दूत थे इसलिए उस अग्नि ने विभीषण के घर को नहीं छुआ.
हनुमान जी की पूंछ को आग लगाई जा रही है ये सुन सीता जी ने भी अग्नि से विनती की के अगर मेरा पतिव्रत सच्चा है तो वो अग्नि हनुमान को शीतल होव. हनुमान जी की पूंछ इस कारण नष्ट नहीं हुई लेकिन पूंछ बुझाते समय उन्हें एहसास हुआ की कंही आग अशोक वाटिका में मौजूद सीता जी को तो नहीं जला गई (क्रोध में इसका उनको भास् न रहा).
लेकिन तब राम जी का नाम ले वो सीता जी के पास पहुंचे और उन्हें सुरक्षित देख राहत की सांस ली....