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बचपन से ही हम दूरदर्शन पर भारतीय पौराणिक इतिहास की कथाये मूर्त रूप में चलचित्र या कार्टून श्रंखलाओ में देखते आये है जो की आज भी जारी है. अब तो बहुत से एंटरटेनमेंट चैनल्स आ गए है ऐसे में निर्माता भी बढ़ गए है ऐसे में रिलायंस मीडिया ने में लिटिल कृष्णा पर एक सीरीज बनवाई थी.
टीवी पर आपके बच्चे उसे बहुत पसंद भी करते होंगे, उसी में एक ऐसी कथा आई थी जो की कम ही लोग जानते है या उसे काल्पनिक मानते है लेकिन असल में वो कथा सत्य है. इस श्रंखला की कथा के अनुसार गोपिया त्यौहार से पहले मोतियों की मालाये अपनी माताओ के लिए बनाती है जिसे देख कृष्ण उनसे अपनी गौओ के लिए मोती मानते है.
लेकिन गोपिया उनके द्वारा मांगे जाने पर नखरे दिखाते हुए मना कर देती है, ये देख कृष्ण रुष्ट हो जाते है और अपनी माँ से कुछ मोती मांग कर लाते है उन्हें उगाने के लिए. श्री कृष्ण मोती उगाते है उन्हें दूध दही घी से सींचते है तो उस स्थान पर पीलू (राजस्थान में इसे जाल कहते है) उग आते है लेकिन कृष्ण तब बांसुरी बजाते है और उससे मोती उग आते है.
ये कल्पित कथा लगती जरूर है लेकिन असल में इसके साक्ष्य आज भी मौजूद है...
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बृजमण्डल में आज भी वो पेड़ मौजूद है जिनपे सुन्दर मोती लगते है, लोग उन्हें चुनते और सहेजते है. वैसे तो पीलू के पौधों पर मोती नहीं उगते है लेकिन श्री कृष्ण का चमत्कार ही है जो आज भी इस पेड़ पर मोती लगते है जो की देखने में काफी सुन्दर है और सहेजने योग्य है.
असल में ये आस्था की शक्ति है की आज भी श्रीकृष्ण के अद्भुद प्रमाण ब्रिज में मौजूद है इसलिए लोग इस 84 कोसी यात्रा के लिए दूर दूर से आते है..
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आज भी वो कुंड मौजूद है जिसका नाम ही मोती कुंड है जिसके पास ही उगे पीलू के पेड़ो पर चमत्कारिक रूप से सुन्दर मोती लगते है.
84 कोसी परिक्रमा के दौरान आज भी लोग यंहा ये मोती चुनने आते है, घंटो कतार में लग कर इस पेड़ से मोदी मिलने की प्रतीक्षा में इंतजार करते है.
इस कुंड की भी अपनी कथा है, मोती प्रकरण के बाद जब राधा और उनकी सहेलियों का प्रयास (ऐसा ही) विफल रहता है तो वो कृष्ण को टोंट मारती है और तब कृष्ण उसी स्थान पर गोपी और श्याम कुंड बना देते है जो की आज भी है.