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अमिताभ की "मर्द" फिल्म में उनका एक संवाद था, "मर्द को दर्द नहीं होता" लेकिन असलियत तो ये है की जिसे दर्द नहीं होता वो मर्द भी नहीं होता. हाँ दर्द से जो पार पा जाए वो ही मर्द है, कहा जाता है की औरते रोटी है मर्द नहीं लेकिन असल में किसी के दुःख में आंसू बहाने वाला ही सही मायने में मर्द है.
दर्द से घबराये नहीं अपने कर्तव्य से न डिगे ये ही तो असली पुरुषार्थ है, क्योंकि दर्द में कराह न भरने और न रोने से ही सिर्फ ये साबित नहीं होता की आप असली वीर है. दर्द में भी जो ना टूटे वो ही मर्द है, गोपियों से बिछड़न हो या नन्द बाबा और यशोदा से या फिर पहली बार वासुदेव और देवकी जी से मिलन हर बार कृष्ण भी रोये थे.
असल में आंसू भावनाये है जो की व्यक्त करती है की आप किसी के दर्द को देख कर कितने दुखी होते है या कितने आहत होते है. लेकिन सिर्फ आंसू बहाने से ही काम नहीं होता किसी के आंसू पूंछने पर ही आप असली वीर कहलाते है, जाने भगवान् राम भी किन किन मौको पर रोये थे रामायण के दौरान?
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बचपन तो नादानी की उम्र है इसलिए उस समय पर नहीं जाते है लेकिन जब राम जी को राज्याभिषेक के स्थान पर वनवास हुआ था तो वो बिलकुल भी नहीं रोये थे. पहली बार वो तब रोये थे जब उनकी चित्रकूट में भरत जी से भेंट हुई और उन्होंने दशरथ जी के मौत की खबर सुनाई तो राम जी रो दिए थे.
चित्रकूट से जब चल दिए और ऋषियों के आश्रम में घूम घूम कर उनको धन्य करते रहे लेकिन जब इसी दौरान उन्होंने मार्ग में मनुष्य के कंकालों का ढेर देखा तो ठिठक गए. पूछा ये क्या है तो ऋषियो ने बताया के ये ब्राह्मणो के नर कंकाल है जिन्हे राक्षसों ने खाकर यंहा फेंक दिया है.
ये सुनते ही राम जी रोने लगे और हाथो में जल लेकर प्रतिज्ञा की के ऐसे राक्षसों से धरती को शून्य कर दूंगा....
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उस घटना के बाद ही वो पंचवटी में निवास करने पहुंचे थे और वंहा जब स्वर्ण हिरण के पीछे दौड़े तो रावण ने धोखे से सीता जी का हरण कर लिया था. जब राम जी लौटे तो सीता को न पाकर दुखी होये और उन्हें ढूंढते हुए रोने लगे जंगल के जानवरो पेड़ो से उनका पता पूछने लगे.
ऐसा कोई दिन नहीं हुआ जब वो सीता को याद कर के रोये नहीं, उसके बाद जब रावण से युद्ध के दौरान लक्ष्मण मूर्छित हुए तब भी राम जी रोये थे. उसके बाद जब सीता जी ने राम जी से वनवास का धोखे से वरदान मांग लिया तो उनकी विदाई पर और वापसी पर कुश लव से मिलके रोये थे श्री राम
अंतिम बार जब उन्होंने लक्ष्मण का त्याग कर दिया था (यमराज से भेंट के दौरान दुर्वासा के आने पर उनके श्राप के डर से) तब भी वो रोये थे....उसके बाद उन्होंने वैकुण्ठ के लिए जलसमाधि ले ली थी...जय श्री राम