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भले ही कोई इसे जातिवाद से जोड़ कर देखे लेकिन आज के समय में स्वर्ण वही है जिसे अपना गोत्र पता है, अंग्रेज (ईसाई) या मुग़ल आतंकी सबने हमारे धर्म पर ही हमला किया ताकि हम इससे दूर हो जाए वरना लुटेरों को धर्म परिवर्तन करवाने की क्या आवश्यकता थी, असल में उनका मकसद ही हमें धर्म से दूर करना था जिसमे आजादी के बाद वो सफल हुए.
सेक्युलर देश होने के बाद अब हिन्दुओ को धर्म की शिक्षा नहीं दी जा सकती है जबकि अल्पसंख्यकों को सरकारी खर्चे पर धर्म की शिक्षा दी जा रही है. नंदी के दक्ष यज्ञ में ब्राह्मणो को दिए श्राप के चलते ब्राह्मणो ने धर्म को अपना धंधा बनाया और इसी के चलते वो पाखंडी हुए और दलितों पर अत्याचार में सहभागी बने जबकि शाश्त्र में इसका उल्टा निर्देश है.
गौत्र से मतलब है आपकी शुरुवात कहा से हुई अर्थात आपका पहला पूर्वज कौन था जिसका वंश आप आगे बढ़ा रहे है इसका जाती से कोई सम्बन्ध नहीं है. इसमें ये बात भी गौर करे की पहले तो सभी ब्राह्मण ही थे कालांतर में हजारो लाखो गौत्र बने गए क्योंकि एक वंश की सात पीढ़िया बीत जाने के बाद गौत्र भी बदल जाता है.
उदाहरण के तौर पर भृगु ऋषि अलग गौत्र है जबकि उनके ही वंश के जमदग्नि अलग गौत्रीय है...
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