पंचदेवो को ही पूजो : शनिदेव के अदम्य उपासक थे राजा दशरथ फिर भी कर्म फल से नहीं बच पाए थे...

"राजा दशरथ के राज्य अयोध्‍या की प्रजा उनके सुशासन में सुखी जीवन यापन कर रही थी सब तरफ सुख और शांति का माहौल था। तभी एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र"

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राजस्थान में शनिधाम के स्थापक दाती महाराज क्या आरोपित हुए शनि भक्तो का विश्वास ही हिल गया हालाँकि शनि सिंघनापुर में वयंभु शनि मूर्ति और मंदिर है जो की सबसे बड़ी आस्था का केंद्र है. वंहा के घरो में आज भी ताले और दरवाजे नहीं लगते है किसी ने अगर फायदा उठाना चाहा तो वो कंही का नहीं रहा.

लेकिन हमारा मानना है की भले ही शनि सूर्य पुत्र है लेकिन वो एक दिक्पाल है भगवान् नहीं, जैसे देवराज इंद्र स्वर्ग का यमराज यमपुरी का कुबेर स्वर्ण की जिम्मेदारी सम्हालते है वैसे ही शनि भी कर्मो के फल देने की जिम्मेदारी सम्हालते है. अगर आपको उनसे कुछ अस्थायी वस्तु चाहिए तो वो जल्दी प्रसन्न होकर दे देते है ये भी सत्य है.

लेकिन जो उनका काम है वो तो वो जरूर करते ही है और उसे वो छोड़ नहीं सकते है, इसलिए हमारा मानना है की मनुष्य योनि के स्थायी समाधान (मोक्ष) के लिए सिर्फ पंच परमेश्वर (शिव शक्ति गणेश विष्णु और सूर्य) की ही उपासना करनी चाहिए! उदाहरण के तौर पर महाराज दशरथ और शनि का दृष्टांत आज जान ले...  

Next Slide में पढ़ें : जाने सबसे बड़े शनि भक्त दशरथ जी की कथा और शनि प्रकोप 
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