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कृष्ण सुदामा की मित्रता हर दोस्त के लिए आज भी मिसाल है, दोस्ती ऊंच नीच, गरीब अमीर देख कर नहीं बल्कि मन देख कर की नहीं जाती है वो हो जाती है. व्यक्ति अपने सरीखे गुणों वाले इंसान की तरह ऐसे आकर्षित हो जाता है जैसे चुम्बक लोहे को खिंच लेता है.
सांदीपनि ऋषि के आश्रम में साथ पढ़े दोनों मित्र उस दिन अलग हो गए जब बारिश में घिरे सुदामा ने मित्र कृष्ण के हिस्से के चावल भूख के विवश खा लिए और कृष्ण भूखे रह गए. इसी कर्ज के चलते सुदामा ने आजीवन निर्धनता झेली और जब बुढ़ापे में उसने कृष्ण को पत्नी के दिए भांत खिलाये तो हिसाब बराबर हो गया और सुदामा भी अमीर हो गया.
हालाँकि ये कृष्ण ने नहीं किया बल्कि इंसान के कर्म ही उसके आगे आते है जो की सुदामा के आगे आये, ये तो हुई इहलोक की बात लेकिन अगर बात करे गोलोक की तो जान ले की कृष्ण सुदामा अनादि से मित्र थे. असल में सुदामा के श्राप के चलते ही राधा जी को श्री कृष्णा का 100 वर्षो का विरह झेलना पड़ा था.
जाने गौलोक की वो कथा जिसके चलते राधा कृष्ण के प्रेम को मिले नए आयाम
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