एक ही बार में दो पुत्र मांग कर माद्री ने कुंती को दे दिया था झटका, नहीं तो और भी भाई होते पांडवो के...

"दुर्वासा ऋषि की सेवा के चलते कुंती को मिला था बचपन में वशीकरण मन्त्र जिसके बल पर श्रापित पाण्डु को मिली थी पांडवो के रूप में संतान लेकिन सौतनों में तनातनी भी..."


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8 साल की थी कुंती तभी पैदा हो गया था कर्ण, सुन कर ही आपके कान खड़े हो गए है होंगे तो सोचिये की कुंती पर तब क्या बीती होगी जब इस उम्र में ही उसके साथ हो गई थी ये घटना. दुर्वासा ऋषि घर आये तो बाल पन से ही सद्गगुणी कुंती ने पिता की आज्ञा से उनकी खूब सेवा की, जाते समय दुर्वासा ने कुछ मांगने बोला पर कुंती ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया था. 

तब दुर्वासा ने जबरदस्ती उसे वशीकरण मन्त्र दिया था जिसके उच्चारण मात्र से देवता तक वश में हो जाते थे. कुंती के मन में सूर्य को देख कर मन्त्र बोलने का विचार भी देवताओ ने ही उपजाया था, तब अपने पिता कुंतीभोज को शर्मिंदगी से बचाने के लिए बड़ी चतुराई से अपना गर्भ छिपाया (सूर्य के प्रताप से) और पैदा होते ही कर्ण को बहा दिया था नदी में.

सूर्य के पूछने पर कुंती ने वशीकरण उच्चारण को अपना अपराध माना और सूर्य को वापस जाने के लिए बोला लेकिन तब सूर्य जिद पर अड़ गए क्योंकि बिना पुत्र दिए जाने पर उनका तेज क्षीण हो जाता. तब कुंती ने कहा की अभी तो मैं रजस्वला भी नहीं हुई और मैं एक बच्ची हूँ इस सूरत में कैसे सम्भव है  ये सब?

तब सूर्य ने कुंती की नाभि को छू लिया जिससे वो तुरंत ही रजस्वला हो गई, उसके बाद सूर्य देव ने नाभि से से कुंती के गर्भ में प्रवेश किया और वंहा मंत्रो द्वारा अपने पुत्र (कर्ण) को स्थापित किया और तुरंत बाहर निकल आये. जाते समय सूर्य ने कुंती से कहा की कर्ण के जन्म से तुम्हारा कौमार्य भंग नहीं होगा और तुम पवित्र ही रहोगी.

Next Slide में पढ़ें : जाने तब इस मंत्र का कैसे प्रयोग कर कुंती ने पाण्डु को बनाया बाप....
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