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जब युधिस्ठर भरियो और पत्नी समेत वनवास में गए थे तो उनके साथ उनके आचार्य भी गए थे, जब उन्होंने वन में पहला पड़ाव लिया तो वनवासी बहुत से ब्राह्मण भी उनके ही पास आ गए लेकिन वनवासी होने के चलते और पर्याप्त राशन न होने के चलते युधिस्ठर उन्हें साथ नहीं रख सकते थे.
ऐसे में उनके आचार्य ने उन्हें सूर्य की उपासना करने को कहा जिन्होंने की उन्हें अक्षय पात्र दिया जिसके चलते जब तक द्रौपदी नहीं खाये वो पात्र अन्नहीन नहीं होता था. ऐसे ही समय पर ब्राह्मणो से घिरे हुए युधिस्ठर और पांडवो को महर्षि मार्कण्डेय जी ने देखा तो उन्हें भगवान् राम जी ही याद आ गए.
युधिस्ठर के प्रणाम करने पर मार्कण्डेय ने उन्हें रामायण का वृतांत सुनाया जिसमे राम जी ने भी वनवास के दौरान सभी ऋषियों के आश्रम पे घूम घूम कर वंहा रुक कर अपना समय व्यतीत किया था. लेकिन बहुत कम लोग जानते है की युधिस्ठर भी धृतराष्ट्र के कहने पर ही वनवास को गए थे.
द्वापर युग के राम कहे जाए युधिस्ठर तो इसमें कोई अचरज नहीं है...
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