Shameful : लगातार तीन ओलिंपिक गोल्ड जितने के बाद भी झोंपड़ी में रहने को मजबूर है "गूंगा पहलवान"

"एक अपाहिज की इस देश में क्या इज्जत है ये तो आप जानते ही है, भला हो मोदी का जिसने अपांग को दिव्यांग का नाम दिया. इनमे से एक है वीरेंदर सिंह जो गूंगा बहरा है पर"

image sources: hindustantimes

जो दीखता है वो ही बिकता है इस बात को तो चलो सही मान ले लेकिन क्या प्रतिभा भी पब्लिसिटी की मोहताज है? वीरेंदर सिंह उर्फ़ गंगा पहलवान के मामले से तो ये ही लगता है, आज के इस डिजिटल युग मे इतनी बढ़ी उपलब्धि 125 करोड़ भारतीयों में से कुछ तक ही रह जाए तो इसे विडंबना ही कहेंगे!

2005 के बेहरो के ओलम्पिक में अपने 70000 रु खर्च करके गया था वीरेंदर सिंह और जित कर लौटा था सोना, उसके बाद तीन कांस्य और अब गोल्ड मेडल्स की हैट्रिक. कुछ ऐसी उपलब्धिया है इस गूंगे पहलवान की लेकिन इसके बावजूद उसे अर्जुन अवार्ड तो मिला लेकिन रहने को आज भी एक झुग्गी ही है इसके पास.

जानना नहीं चाहेंगे उसके संघर्ष की कहानी, जानकार आप कहेंगे मीडिया है बिकाऊ सरकार सो रही है....

Next Slide में पढ़ें: गूंगे बेहरे ने कैसे पाई ये उपलब्धि, खर्च के लिए घूम घूम कर खेलता है प्रोफेशन मैच 
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