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जो दीखता है वो ही बिकता है इस बात को तो चलो सही मान ले लेकिन क्या प्रतिभा भी पब्लिसिटी की मोहताज है? वीरेंदर सिंह उर्फ़ गंगा पहलवान के मामले से तो ये ही लगता है, आज के इस डिजिटल युग मे इतनी बढ़ी उपलब्धि 125 करोड़ भारतीयों में से कुछ तक ही रह जाए तो इसे विडंबना ही कहेंगे!
2005 के बेहरो के ओलम्पिक में अपने 70000 रु खर्च करके गया था वीरेंदर सिंह और जित कर लौटा था सोना, उसके बाद तीन कांस्य और अब गोल्ड मेडल्स की हैट्रिक. कुछ ऐसी उपलब्धिया है इस गूंगे पहलवान की लेकिन इसके बावजूद उसे अर्जुन अवार्ड तो मिला लेकिन रहने को आज भी एक झुग्गी ही है इसके पास.
जानना नहीं चाहेंगे उसके संघर्ष की कहानी, जानकार आप कहेंगे मीडिया है बिकाऊ सरकार सो रही है....
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